नई दिल्ली। देश को शर्मसार करने वाले आदर्श घोटाले पर सीएजी (कैग) की रिपोर्ट संसद में पेश कर दी गई। इस रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि आदर्श सोसायटी के लिए राजनेताओं के साथ-साथ सरकार और सेना के अफसरों ने हर स्तर पर कानून तोड़ा।
सीएजी ने अपनी किसी रिपोर्ट में पहली बार घोटालों के जिम्मेदार अफसरों और नेताओं के नाम भी लिखे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि आदर्श की जमीन सेना के कब्जे में थी। राज्य सरकार ने जानबूझकर इस तथ्य की अनदेखी की। डिफेंस इस्टेट आफिसर और जनरल आफिसर इन कमांड के बेटे प्रस्तावित सोसायटी के सदस्य थे। इसलिए इसे तीन दिन के अंदर दिखा दिया गया कि ये सेना की जमीन नहीं है। यहीं से घोटाले की नींव पड़ी।
सोसायटी पूर्व सैनिकों और सेना के लोगों के लिए बनाई गई थी, लेकिन बाद में इसमें आईएएस अफसरों, नेताओं और उनके रिश्तेदारों को भी शामिल कर लिया गया। इस घोटाले को अंजाम देने में महाराष्ट्र सरकार के अफसरों और राजनेताओं ने सक्रिय भूमिका अदा की। हालांकि इस मामले में फंसे पूर्व मुख्यमंत्री विलास राव देशमुख अभी भी सीएजी की रिपोर्ट से सवाल उठा रहे हैं। देशमुख ने कहा कि ये राज्य सरकार की जमीन थी, सेना की नहीं। इन्क्वायरी अभी चल रही है।
आदर्श घोटाला: अशोक चव्हाण ने हलफनामा दाखिल किया
बहरहाल, सीएजी की रिपोर्ट में नेताओं के झूठ की एक-एक परत उधेड़ी गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जमीन हथियाने के बाद शुरू हुआ सोसायटी के साथ नेताओं और अफसरों की मिलीभगत का खेल। सिर्फ सेना की जमीन नहीं हथियाई गई, बल्कि बेस्ट की जमीन को भी हथिया लिया गया। शहरी विकास विभाग के प्रमुख सचिव ने इसके लिए बेस्ट के अधिकारियों को धमकाया। आदर्श की फाइल जिसके पास भी गई, उसे या उसके संबंधियों को सोसायटी का सदस्य बना लिया गया। सेना के पूर्व बड़े अधिकारियों जैसे जनरल एन.सी.विज, एडमिरल माधवेंद्र सिंह और जनरल दीपक कपूर को भी स्पेशल केस बताते हुए सोसायटी का सदस्य बना लिया गया। इसके बाद पर्यावरण विभाग की मंजूरी को लेकर गलतबयानी की गई।
शहरी विकास सचिव सी.वी. देशमुख ने फर्जी दस्तावेजों के सहारे लिख दिया कि केंद्र से पर्यावरण मंजूरी मिल गई है। इसके बदले देशमुख को भी इमारत में फ्लैट मिल गया। रिपोर्ट में इस सिलसिले में लिखी गई एक चिट्ठी को शामिल किया गया है। इस दस्तावेजी सबूत को देखते हुए विपक्ष सरकार पर हमला बोलने की तैयारी में है।
सीएजी रिपोर्ट में सीधे-सीधे तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं। कहा गया है कि इमारत बनाने के लिए मानक में छूट देने के लिए शहरी विकास विभाग के प्रमुख सचिव ने मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी और अशोक चह्वाण ने तुरंत उसे मंजूरी दे दी। ये बात किसी से छिपी नहीं कि अशोक चह्वाण के पांच संबंधियों को आदर्श में फ्लैट मिले थे। सीएजी ने हैरानी जताते हुए कहा है कि उसे आपराधिक दृष्टि से मामले की जांच का अधिकार नहीं है, लेकिन आदर्श का मामला नेताओं और नौकरशाहों की ईमानदारी पर गंभीर सवाल उठाता है। ऐसे में सरकार और संसद पर ये जिम्मेदारी है कि वो आम लोगों का भरोसा बनाए रखें और इस मामले की गभीरता से जांच कराए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो भविष्य में भी ऐसे घोटाले होते रहेंगे।